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दूँगा दाना-पानी / मेराज रज़ा
Kavita Kosh से
मेरा प्यारा गाँव छोड़कर,
कहाँ उड़ चली हो गोरैया!
दरवाजे पर देखो सूना,
खड़ा नीम का पेड़!
है आवाज़ लगाती तुमको,
वो छत की मुंडेर!
भूल गईं क्या गाँव सलोना,
यहीं पली थीं तुम गोरैया?
बना नीम पर एक घोसला,
करना यहीं बसेरा!
गूँजे मीठा कलरव फिर से,
जीवन डाले डेरा!
साथ चिरौटे को भी लाना,
भला एक भोली गोरैया!
जो आओगी आँगन मेरे,
दूँगा दाना-पानी!
रातों को मेरी दादी से,
सुनना रोज़ कहानी!
फुदक-फुदक आँगन में खाना,
भात, बाजरा, फल गोरैया!