भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूध-भिगोये इस मौसम में / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
हरी घास पर
आओ, कुछ पल ऋतु की बात करें
मैदानों में धूप-नहाती
छवियों को जी लें
पेड़ों से झरती
नभ की मुस्कानों को पी लें
नेह-घाट पर
आओ, कुछ पल मन जलजात करें
अभी-अभी खिल रहे
फूल की खुशबू से बोलें
नये-नये क्षितिजों की ड्योढ़ी
बाँहों में खोलें
किरणों की
क्वाँरी चितवन से अपना गात भरें
पनघट पर फिरती
सूरज की इच्छा हम हो लें
देहों की लहरों में
आओ, साँसों को धो लें
दूध-भिगोये
इस मौसम में धड़कन साथ करें
कविता होते क्षण को
आओ, होंठों से छू लें
इस पल के भोले परिचय में
अपने को भूलें
एक-दूसरे को
चाहों के दिन सौगात करें