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दूध की दुकानन पै बर्गरन के जलबे एँ / नवीन सी. चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
दूध की दुकानन पै, बर्गरन के जलबे एँ।
बर्गरन की किरपा सों, डॅाक्टरन के जलबे एँ॥
खेत और बगीचिन पै, साढ़े-साती बैठी है।
लीडरन की किरपा सों, बिल्डरन के जलबे एँ॥
हल धर्यौ नहीं लेकिन, टैक्स छूट पामतु ऐं।
आज के जमाने के, हल-धरन के जलबे एँ॥
ढ़ूँढ-ढ़ूँढ घोड़न कूँ, एक्सपोर्ट कर डारौ।
अब तौ रेस-कोर्सन में, खच्चरन के जलबे एँ॥
घर में घर गिरस्थी सों, कच्छु बच न पामतु ऐ।
और गली बजारन में, बन्दरन के जलबे एँ ॥