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दूरी रे गवन सै, ऐलै रे कवन बाबू / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में पति की महत्ता वर्णित है। भरे-पूरे परिवार में रहने पर भी पति के बिना पत्नी का जीवन निरर्थक है। पत्नी की वचन-चातुरी से प्रसन्न होकर पति द्वारा उसे अपने साथ विदेश ले जाने का उल्लेख भी इस गीत में है।

दूरी रे गवन सेॅ, ऐलै रे कवन बाबू।
बटिअहिं<ref>रास्ते में</ref> परि गेलै<ref>पड़ गया; हो गया</ref> साँझ रे गवनमा॥1॥
कहाँ गेली किय भेली, सुहबे कनियान दाय<ref>कम उम्र की बच्ची या घर की लड़की के लिए प्यार का संबोधन</ref>।
सूहबे, कोहबर में येहे बिध बेहबार, रे गवनमा॥2॥
एक हमें राजा बेटी, दोसरो ससुइया<ref>सास की</ref> पुतहू।
मोरो सेॅ नै होएतो, बिध बेबहार रे गवनमा॥3॥
एतना बचन जबे, सुनलनि कवन बाबू।
घोड़ा पीठि भेलै, असबार रे गवनमा॥4॥
पटोर झारि झूरी, बाहर भेली सूहबे दाय।
सूहबे धरी लेलन, घोड़ा के लगाम रे गवनमा॥5॥
अपने जे जाय छै परभु, देस बिदेस।
हमरा कै कहाँ छाड़ने, जाय छे रे गवनमा॥6॥
नैहरा में छथुन सुनरी, माइ बाप भैया।
ससुरा में छथुन, छोटका देबर रे गवनमा॥7॥
बिनु रे मैया बाप, कैसन नैहरबा।
बिनु रे सामी, कैसन ससुररिया रे गवनमा॥8॥
डोलिया कानैते<ref>रोते हुए</ref>, माइ बाप भैया रे।
जूदा करी देतो, छोटका देबरबा रे गवनमा॥9॥
एतना बचनिया जबे, सुनलनि कनिया सुहबे।
रोकी रखलनि, जबाब रे गवनमा॥10॥
एतना बचनिया जबे, सुनलनि कवन बाबू।
सुहबे लेलन अँगुरी, लगाइ रे गवनमा॥11॥

शब्दार्थ
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