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दूरी / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
सहज केॅ सहेजनें बिना
असहज केॅ सहेजी
कहिया तलुक
दुनिया सहेजै के
नाटक करभौ
मानलिहौं कि
तोंय क्षणभर में
अंतरिक्ष नापी लै छहो
तड़ातड़
सामुद्रिक गहराई
पैठी लै छहो
पर हमरा तलक
पहुँचै में
एत्तेॅ समय केना
लागी जाय छौं
हम्में, कोय भी
हुअेॅ पारै छी
तहूँ, तोरऽ पड़ोसी
या कोइयो
लेकिन
अंतरिक्ष केरऽ ऊँचाई
आरो
सागर केरऽ गहराई
तेॅ नहियें।