भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूरी / वीरेंद्र आस्तिक
Kavita Kosh से
इतने वर्षों में केवल
दुनिया छोटी हुई
किलों की दूरियाँ बढ़ी
कोयल बागी हुई भूमिगत
बागों में कौवों का बहुमत
गिद्दों की अगवानी में
डाल-डाल उखड़ी
उतर गया शेरों का चश्मा
अजरज, कहीं न कोई सदमा
जंगल में उल्लू के कुल-
की ही शाख़ बढ़ी