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दूरी / सुरेश बरनवाल
Kavita Kosh से
मैं
अपने घर की छत से
निहारा करता सितारे
और आंखों से नापता
जमीन से उनकी दूरी को
फिर बेबस हो
बैठ जाता था।
एक दिन मैंने देखा
अपने तीन साल के बेटे को
चांदनी रात की बेला में
चांद को निहारते
और अपने पैरों पर उचककर
उसे लपकने की कोशिश करते
बार-बार।
मुझे लगा
इतना भी दूर नहीं आकाश।