दूर अपने घर जातीं तुम / अलेक्सान्दर पूश्किन
दूर अपने घर जातीं तुम
एक अपरिचित देश जा रही थीं
सबसे कठिन असह्य उस पल में
मैंने तुम्हारी हथेलियों को
अपने आँसुओं से भिगोया था
अपने ठण्डी सुन्न पड़ती
उँगलियों से पकड़कर रोकना चाहा था तुम्हें
और तब मेरे दिल ने कहा था --
सदा रहेगा यह दर्द अब तो तुम्हारे पास
तुमने अपना मुँह घुमा लिया था
हटा लिए थे होंठ कठिन क्रूर चुम्बन से
कभी स्वप्न जगाया था तुमने मेरे भीतर
और निष्काषित भी कर दिया था उसी पल
तुमने कहा था -- अगली बार जब हम मिलेंगे
घने औलिव की छाँव में, खुली उजली धूप में
हमारे चुम्बन से यह पीड़ा जा चुकी होगी
आज जहाँ नीला
स्वच्छ आकाश है
और घने पेड़ों की छाँव
कलकल बहती नदी पर
नृत्य करती है
खो गया है सब
वक़्त की अनन्त धारा में
वह रूप, वह पीड़ा
पर यादों में बसा है
वह मधुर चुम्बन
आज भी इन्तज़ार है मुझे,
एक वादा था तुम्हारा...
अँग्रेज़ी से अनुवाद : शैल अग्रवाल