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दूर एक नज़र करके चला जाऊंगा / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
सुनिए,
आप खिड़की बन्द करें
या अंगड़-खंगड़ उठाएँ और पटकें
आपके भीतर
एक नदी दौड़ती है,
एक पहाड़ देखता है उचक-उचक कर
एक हवा हिला जाती है
आपकी शाखाओं को !
सुनिए,
मैं आपके भीतर हूँ
एक अंगड़-खंगड़ सा
एक नदी सा
एक पहाड़ सा
एक ख़ुशनुमा शाखा सा
यह वक़्त की पाबन्दी है
जो मुझे भीतर
और आपको बाहर
तिल-तिल दूर फेंक आती है !
शिवपिण्डिका का एक नाम ही है
तिलभण्डेश्वर !
याद है हमने वहीं
अपनी-अपनी बन्द खिड़कियाँ
खोली थीं !