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दूर कहीं अकुशी है चिल्हकती / ठाकुरप्रसाद सिंह
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दूर कहीं अकुशी है चिल्हकती
गहरे पथरौटे के कूप-सी
प्रीत मोरी मैं ऊभचूमती
हाय दैया निरदैया आस रे
डोरी-सी रह-रह कर ढीलती
दूर कहीं अकुशी है चिल्हकती
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