दूर कहीं मेरी मंजिल है / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
जीवन के पथ पर चल दूंगी दूर किसी अनजान नगर में
हर मंजिल के आगे आगे दूर कहीं मेरी मंजिल है॥
अमर उर्मियाँ सिंधु - हृदय में
उमड़ उमड़ कर रह जाती हैं ,
कितनी बूंदे मेघ - हृदय में
छिपी न कभी बरस पाती हैं।
हर उच्छ्वास श्वसन की लय पर
जीवन - गीत गूंज उठता है।
पर दिगंत के छोरों से फिर
मृत्यु - नटी उड़ कर आती है।
हर धड़कन को समझा दूँगी आँखों की बोली चुप कर के
क्योंकि क्षणों के अंतराल में छिपा कहीं मेरा साहिल है।
हर मंजिल के आगे आगे दूर कहीं मेरी मंजिल है॥
दलित उरों के अरमानों को
चुनकर माला एक बना लूँ ,
नैनों के अनमोल रतन को
पीड़ा के यंत्रों में ढालूँ।
खिल न सके जो आस सुमन
में उनकी सूखी पंखुड़ियों से
अपने जीवन की बगिया का
कोना-कोना आज सजा लूँ।
किन्तु नहीं यह लक्ष्य न जीवन सत्य किसे फिर कहाँ तलाशूं
राहों के हर एक मोड़ पर बैठा मंजिल का कातिल है।
हर मंजिल के आगे आगे दूर कहीं मेरी मंजिल है॥