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दूर कहीं वंशी बजी लगी झमकने झाँझ / धनंजय सिंह
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पंख समेटे धूप ने
उतरी नभ से साँझ
दूर कहीं वंशी बजी
लगी झमकने झाँझ
दिन भर भटकी प्यास से
खूँटे लौटी गाय
चारा-सानी कुछ नहीं
यों ही खड़ी रँभाय
फ़सल काट खलिहान रख
घर को चला किसान,
पूरब से उठते दिखे
आँधी और तूफ़ान।
हतप्रभ होकर देखता
भीषण झंझावात
कैसे मेंहदी रचेगी
अब बिटिया के हात।