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दूर जंगल के किनारे पर खड़ी है झोंपड़ी / रंजना वर्मा

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दूर जंगल के किनारे पर खड़ी है झोंपड़ी
यूँ तो है छोटी मगर दिल की बड़ी है झोंपड़ी

है नहीं लेती किसी की रंच भर भी भूमि पर
दृष्टि में भू-माफ़ियाओं के गड़ी है झोंपड़ी

एक निर्धन ने मुहब्बत से बनाया था जिसे
अब हुई जर्जर उपेक्षित-सी पड़ी है झोंपड़ी

भूल कर भटके हुओं को शरण देने के लिये
खोखली सब मान्यताओं से लड़ी है झोंपड़ी

प्यार से देती सदा है हर किसी को आसरा
है कभी सुखदा कभी आँसू झड़ी है झोंपड़ी