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दूर जा कर दूर कब हो पायेगा / सिया सचदेव
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दूर जा कर दूर कब हो पायेगा
और वोह दिल के करीब आ जायेगा
गुल कभी सूखे नहीं हैं शाख पर
इक उम्मीदों का सवेरा आएगा
एक वीरानी फ़क़त रह जायेगी
बज़्म को जब लूटकर वो जायगा
खुश्बुओ से घर मेरा महकाएगा
इक दिन तो घर वो मेरे आएगा
हर हसीन गुल का मुकद्दर हैं यहीं
कोई उसको तोड़ के ले जायेगा
कोई सूरज से जरा ये पूछ ले
मेरे घर से कब अँधेरा जायेगा
उसपे अल्लाह का करम हो जायेगा
जो किसी की उलझने सुलझाएगा
कह ना दू उसको 'सिया' मैं दिल की बात
मुझको बातो में बहुत उल्झायेगा