इस गहराती अँधेरी में
केवल ध्रुवतारा टिमकता है
आवाज़ों की जंगल की रात में
अंदर छुपा हुआ सन्नाटा
रास्ता दिखाता है
धमकते दिल की
इच्छा का उजेरा
दिखलाता है
शताब्दी के पार आगे तक
बस दिमाग में उगे हुए पंख
उड़ते साँय-साँय
दूर ध्रुवतारा
टिमकता ही जाता है किस तरह!