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दूर फिर आज कोई टेर सुनाई दी है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दूर फिर आज कोई टेर सुनाई दी है
साँवरे से किसी दुखिया ने दुहाई दी है
फिर किसी ग्राह ने मुश्किल में है गज को डाला
मौत दे सामने चीखें औ रुलायी दी है
जीते जी चैन ही पाया न मसर्रत कोई
जब मिली मौत तो ग़ैरों-सी विदाई दी है
जिसने माँ बाप को ठुकरा दिया बुढ़ापे में
ऐसी औलाद को कब माँ ने बुराई दी है
नाम लेके तेरा जीते रहे हम शामो सहर
मेरी तक़दीर में लिख तू ने जुदाई दी है
थरथराते रहे लब अश्क़ रुके आंखों में
देने वाले ने अजब हम को खुदाई दी है
जिसने बख्शी है ज़माने को जमीं जन्नत सी
उस की सूरत हमें हर कण में दिखाई दी है