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दूर बहुत है घर / राकेश कुमार पटेल
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दूर बहुत है घर
कैसे तय हो सफर
धूप नाराज है
छाँव पड़ती है कम
लम्बी दूरियां
पांव चल पाते कम
थकान है ज्यादा
राहतें मिलती कम
जान चली जाती है
ना नजर आता घर
मंजिलें खो गयी
हो गए दर बदर
दर्द पसरा हुआ
कैसे मंज़र यहाँ
अश्क ही अश्क है
आँखें बंजर यहाँ
दूर बहुत है घर
कैसे तय हो सफर
लम्बी दूरियां
पाँव चल पाते कम ।