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दूर ब्याबाँ जंगल में / शमशाद इलाही अंसारी

दूर ब्याबाँ जंगल में
कुँए का पानी
गतिहीन, एकाग्र, शांत
अपने अंतिम छोर तक पहुँचने के लिये
साधना करता|

किसी अल्ल्हड़ के पत्थर फ़ेकने पर
जैसे टूटती है साधना उसकी
एक विस्फ़ोट के साथ
गतिशील, विभाजित, अशांत
छिन्न-भिन्न हो जाता सब कुछ
मैं हो रहा था स्थिर
दूर ब्यांबा जंगल में
एक कुँए के पानी की तरह|

तुम्हारा उदय
पत्थर गिरने की भाँति
भंग कर गया उपासना मेरी।

मैं एक बार फ़िर प्रयत्नशील
अपनी एकाग्रता को समेटने में
अपने सीमित
छोर की ओर अग्रसर
अपने अंत की प्रतीक्षा हेतु
दूर ब्यांबा जंगल में
एक कुँए के पानी की तरह।


रचनाकाल : 24.08.1987