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दूल्हा बसन्त / रंजना जायसवाल

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जंगली घास-फूस और पौधों ने
पहन लिए हैं
रंग-बिरंगे फूलों वाले कपड़े
मूली ने हरी
पोस्ते ने लाल
तो तीसी ने ओढ़ रखी है
हल्की नीली ओढ़नी
पेड़ों की नई फुनगियाँ
तिलक लगाए 'यूँ' उमग रही हैं
मानो छू ही लेंगी आकाश
मंजरियाँ
पहन रही हैं
नए नमूने के नथ,टीके और झुमके
हवा गले में हंसुली खनखनाती
गा रही है फाग
पगडंडियों ने हरी साड़ी पहनकर
घूँघट निकाल लिया है
पर झाँक लेती हैं कभी-कभी ओट से
तन्वंगी लताओं ने खुद को
सजा रखा है फूलों से
और उझक रही हैं
छतों, कंगूरों और मुंडेरों से
बिछ गया है चारों तरफ हरा कालीन
पेड़ फूलों की मालाएं लिए खड़े हैं
सज गए हैं बन्दनवार
तितलियाँ,मधुमक्खियाँ
गा रही हैं मंगलाचार
उल्लसित है दिग्दिगंत
बरात लेकर आया है
दूल्हा बसंत