दूवा 1-10 / सत्येन जोशी
देव बिना ज्यूं देवरौ, बिन चांदै ज्यूं रैण ।
अपणायत बिन आंगणौ, जाणै फूट्या नैण।1।
कूकू पगल्या मांड नै, घर में कियौ प्रवेस।
लीला पग कर काढ दी, साथै आयौ क्लेस।2।
जिण आंगण पड़-गुड़ व्हिया, ऐ पग ऊभण जोग।
उण घर सूं छूटै नहीं, लग्यौ प्रेम रौ रोग।3।
आंवल नाले गाडनै, गजब घालियौ नेह।
इण कारण इण आंगणै, टाळ न छूटै देह।4।
जीव आंगणै सूप नै, डील गयौ परदेस।
जीव हाळ है अचपळौ, डील सुखाया केस।5।
टूटौ भागौ आंगणौ, गाबा झीरम झीर।
खुद लांघण कर पावणा, सारू रांघी खीर।6।
आंगण में भीतां चुणी, मन में खुदगी खाड़।
देख जमानौ भायला, कैड़ी खेली राड़।7।
हेज न मावै हांचळां, हिवड़ै नाह समाय।
जिण सूं आंगण गळगळौ, बोल न मूंडै आय।8।
आंगण व्हेग्या चीकणा, मैला व्हेग्या मन।
बगत बायरै नै नमो, खूब कमायौ धन।9।
आंगण आंगण री अठै, न्यारी कथा अनेक।
झूंपा और हवेलियां, सब री खुद री टेक।10।