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दूसरा दिन / मोहन राणा
Kavita Kosh से
आते ही खोल देता है संदूकची
पुराने कपड़ो की
जिनसे बहुत परिचित होते हैं
उन्हें कौन पहचानता है
जो नहीं दिखता
उसे कौन याद करता है
दूसरा दिन
दूसरा आदमी
दूसरी औरत
कोई और
आते ही उधेड़ देता है कल लगे टाँके