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दूसरी किरण / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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नव ज्योति-किरण लाया प्रदीप।
काली रजनी का अन्धकार
छाया था दिशि-दिशि में अपार
नूतन प्रकाश की स्वर्ण-रेख
लाया झिलमिल-झिलमिल प्रदीप॥1॥

हँस, खिल-खिल प्रबल प्रभंजन में
मेघों के भीषण गर्जन में
हो उच्च भाल स्वर्णिम सदैव
सन्देश अमर लाया प्रदीप॥2॥

जल-जल कर पाया स्वर्ण गात
हो नया प्रात, औ’ नई बात
होगा कैसे अब अन्धकार
जब सतत् जलेगा यह प्रदीप॥3॥

नव स्नेह-प्रेम से हृदय तरल
मानव मानव का हो अविरल
‘जलते हम जग होता उज्ज्वल’
जल-जल कर सिखलाता प्रदीप॥4॥