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दूसरी दुनिया / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

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हरे भरे पेड़ पौधों की
हंसती हंसाती दुनिया
ओस की बूंदों-सी जहाँ
टपकती रहती हैं खुशियाँ
गुलाबी अधरों पर खेलती
रहती है रेशमी मुस्कान।
पवन के संगीत पर
झूमते है सब बडे छोटे।
यह दुनिया शांतिनिकेतन है
गीतांजली के बोल गूंजते
रहते यहाँ वातारण में
यहाँ भी संघर्ष करना
पड़ता है जीने के लिए
बीज को प्रस्फुटन के लिए
हवा पानी और मिट्टी चाहिए
होड मची रहती है सूरज की
रश्मियों में बहती संजीवनी
ऊर्जा को पकड़ने के लिए
पर टांग घसीटन नहीं होत।
स्वाबलंबी है अपना भोजन
बना लेते हैं अपने आप
जड़ों से खीच लेते हैं पानी
यहा दूसरों की थाली पर
नजर गढ़ाई नहीं जाती \
न कोलाहल न छीना झपटी
न मारपीट न माहाभारत
न कृष्ण को अवतरित
होने की ज़रूरत॥