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दूसरों की जो न कर पाये भलाई / रंजना वर्मा

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दूसरों की जो न कर पाये भलाई।
आज के युग में वही खाता मलाई॥

जिंदगी तो है मिला करती सभी को
किंतु यह सबको कहाँ है रास आई॥

हो घिरा ग़म का अँधेरा सब तरफ से
चाँद ऐसे में नहीं देता दिखाई॥

छँट गया सब धरा पर छाया अँधेरा
फिर उषा कि किरण नभ में मुस्कराई॥

प्यार की अनमोल सारी भावनाएँ
जब जगीं दीवार दुनिया कि गिराई॥

हैं किया करते सहज वादे सभी पर
धन्य वह अपनी कसम जिसने निभाई॥

भक्ति है विश्वास निर्मल आस्था का
है इसीने रीति जीने की सिखाई॥