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दूसरों को दर्द दें ऐसा कभी मत सोचिये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दूसरों को दर्द दे ऐसा कभी मत सोचिये
जो न मिट पाये कभी ऐसी इबारत सोचिये
नफ़रतों से दोस्ती अच्छी नहीं होती कभी
प्यार से जो बाँध ले ऐसी मुहब्बत सोचिये
फिर रहे आतंकवादी आज पूरे देश में
मिटेगी कैसे जमाने की ये दहशत सोचिये
हो गया खुदगर्ज़ कितना आज का हर आदमी
दूर हो कैसे पड़ी सब पर मुसीबत सोचिये
अब हमारे दिल ज़िगर बेदर्द हैं इतने हुए
है नहीं भाती हमे अच्छों की सोहबत सोचिये
गालियाँ देने लगे सब सभ्यता को भूल कर
मजहबों में लोग सारे हैं सियासत सोचिये
रूठ जाता है ख़ुदा भी मज़हबों की जंग से
कब खुदा हम पर करेगा फिर से रहमत सोचिये