भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दू आखर कागत पर उतरल / नवल श्री 'पंकज'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दू आखर कागतपर उतरल सौंसे हाथ सियाही लागल
अर्थ नै बूझय आखर के बस हाथ देखि वाह-वाही लागल

खर डोलेलनि दू टा तकरो सात कोस धरि सोरहा भेलय
मंच सजा कऽ लोक हकारल आसन ऊंचगर शाही लागल

जींस आ कुरता चमकि देहपर चौके-चौके करैत फुटानी
बेटा सभ नेता बनि घूमैत बाप कतहु चरवाही लागल

अप्पन थारी कूकुर चाटैत अनकर हिस्सा लूझि रहल छै
जेहने भोजन तेहने शोणित ज्ञानक पातमे लाही लागल

काजक बेरमे दोग नुकायल खाय काल पेटकुनिया देने
सांझ परैत धऽ लैछ रतौन्ही भोर होइत अगराही लागल

नेताजीकें कुर्सी भेटलनि जन-जन के दुःख हरथिन आब
गाम ओगरतै चोर-उचक्का सेंध खूनईमे सिपाही लागल

पुरुखक बीचसँ भेल निप्पत्ता मौगी लग पुरखाहा छाँटैत
बाहर सिहकल मरचुन्नी आ अंगना अबैत पसाही लागल

पुरना गाछक नमहर धोधरि शोकाकुल छै भेल "नवल"
नव-अंकुरक नव-पल्लव कुसुमित देखि छै डाही लागल