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दृगों में वेदना सोती / प्रेमलता त्रिपाठी
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दृगों में वेदना सोती ।
छिपे ज्यों सीप में मोती ।
नयन झुकते समर्पण में,
हया हृद गेह में होती ।
बसी कटुता हृदय जिसके,
सदा वह शूल ही बोती ।
भरे मुस्कान जीवन में,
कुटिलता क्यों उसे खोती ।
महकती प्रेम की बगिया
खिला करती नहीं रोती ।