दृढ़प्रतिज्ञ / अमिता दुबे
वे देखना चाहते हैं
हमारी आँखों में आँसू
सुनना चाहते हैं
एक दबी–घुटी सिसकी
और दिल की गहराई से
उठने वाली एक ठण्डी आह
क्योंकि
वो मानते हैं हमें
प्रतिनिधि
अबला नारी का
जिसके अस्तित्व पर
हर क्षण खतरा मण्डराता है
अलग–अलग तरह से मण्डराता है
कभी आर्थिक तो कभी सामाजिक
कभी पारिवारिक तो कभी राजनैतिक
कभी जलन का तो कभी शोषण का
खतरा बस खतरा ही खतरा
लेकिन –
उन्हें नहीं मालूम
जिसने हमारी आँखों में
सपने संजोए हैं
हमारी पलकों को चूमकर
उसी ने सारे दुख सारे आँसू
सोख लिए हैं
कभी पिता–भाई–पुत्र बनकर
तो कभी जीवन–संगी–मित्र बनकर
अपनी आँखों के आँसू
मुस्कान के फूल बनाकर
संसार में बिखेरने को
हम दृढ़प्रतिज्ञ हैं
क्योंकि हमारा विश्वास है
कुरूक्षेत्र – धर्मक्षेत्र में
जीत हमेशा
सत्य, कर्तव्य और निष्ठा की होती है ।
दुःशासन–दुर्योधन के सैन्यबल को छोड़
मुरलीधर के चक्र को प्रतिष्ठा
सदैव दुर्बल अर्जुन के साथ रहती है ।