भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दृढ़ रख संकल्पों को अपने / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दृढ़ रख संकल्पों को अपने
सच में परिणत होंगे सपने

इतनी जल्दी हार न मानो
इस जीवन को भार न मानो
निष्फल हुए प्रयासों को ही
विधि का अन्तिम सार न मानो
भागीरथी प्रयत्नों को तुम
और अभी आगे बढ़ने दो
दुखते पाँवों को ये सबसे
दुर्गम घाटी तो चढ़ने दो
निश्चित मानो नाम तुम्हारा
मंज़िल स्वयं लगेगी जपने
दृढ़ रख संकल्पों ...............

यदि मन हारा समझो हारे
मन के जीते जीत है प्यारे
धारण धैर्य करो तो थोड़ा
हो जाएंगे वारे-न्यारे
रजनी को ढलना ही होगा
होगी सुखद सुबह की दस्तक
कितने दिनों रहेगा कोई
आखि़र पीड़ाओं का बंधक
सुदिनों की जागृति फिर होगी
दुर्दिन पुनः लगेंगे झपने
दृढ़ रख संकल्पों ................

कोई साथ नहीं देता है
दुख में हाथ नहीं देता है
किंकर्तव्य-विमूढ़ों को वर
कोई नाथ नहीं देता है
पक्का अगर इरादा हो तो
आशंकाएँ धुल जाती हैं
साधें एकलव्य सी हों तो
सारी राहें खुल जाती हैं
कुंदन सा दमकेगा जीवन
संघर्षों में देना तपने
दृढ़ रख संकल्पों ................