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दृश्यम / मनीष मूंदड़ा

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प्रकृति के चिलमन से
छलकती रोशनी
कितना मनोरम ये दृश्य
कितना आत्मीय ये सौंदर्य
नयनाभिराम!
आओ, आँखों से अपने अंदर उतारें
उल्हासित
प्रह्लादित
स्फुटित हो जाएँ