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दृश्य में चुंबन / कमलेश्वर साहू

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दृश्य में चुंबन तो है
मगर प्रेमी युगल नहीं
दो मशीने हैं मानो
न आग है न, उत्तेजना
न प्यास है न, मिठास
न डर है न, शर्म
न बेचैनी है न, थरथराहट
न सांसें तेज है न, धड़कन बेकाबू
न भावनाओं का आवेग है
न नसों के फट जाने का अंदेशा
न होंठों से खून टपक पड़ने की आशंका
एक के होठों पर
दूसरे के होठों का
कैसा चुंबन है यह
कि लग रहा है
छपाई मशीन के
किसी पुर्जे पर रखा जा रहा हो
कोई दूसरा पुर्जा-
कि जैसे टकरा रहे हों
एक दूसरे से आहिस्ता
आग रहित दो मुलायम पत्थर !