देखकर ख़्वाब किसी और ज़मीं के यारो / ज़ाहिद अबरोल
देख कर ख़्वाब किसी और ज़मीं के यारो
हम नहीं ग़ैर बने हम हैं यहीं के यारो
जब भी टूटेंगे ये पैमान<ref>वा’दे</ref> ज़मीं के यारो
हम फ़लकपैमा <ref>आकाशचारी, नभचर,ऊंची उड़ाने भरने वाले</ref> रहेंगे न कहीं के यारो
दिल के पर्दे में उसे जब भी छुपाना चाहा
राज़ ज़ाहिर<ref>प्रत्यक्ष</ref> हुए उस पर्दःनशीं<ref>पर्दे में रहने वाला</ref> के यारो
शह्र में हर जगह आईन-ए-ज़बांबंदी<ref>बोलने की मनाही का कानून</ref> था
फिर भी चर्चे हुए मुझ गोशःनशीं<ref>एकांतवासी,कोना में बैठने वाला</ref> के यारो
आस्मां से जो गिरे हैं तो ज़मींदोज़<ref>भूमिगत</ref> हुए
आस्मां के न रहे और न ज़मीं के यारो
“ज़ाहिद” इक उम्र रहे हम तो परीख़ानः<ref>परी-आवास</ref> में
ख़्वाब देखे मगर इक ज़ु़हरःजबीं<ref>शुक्र तारी –सा चमकता हुआ मुख, शुभ्रभाल सुन्दरी</ref> के यारो