देखता हूँ स्वप्न / लीलाधर मंडलोई
पंखों वाले कीड़ों के दुर्लभ उत्सव को
देखा मैंने अंदमान के सघन वनों में
विचित्र से किन्तु देखने में सुंदर
और ऐसे भी कि आश्चर्य बहोत
कितना अद्भुत है कि देखता हूं जब
पंखों से कोरियोग्राफ होती नृत्य संरचनाएं
अपनी श्रृंगिकाओं को एक लय में
बायें से दायें और दायें से बायें घुमाना
एक साथ कई नर और मादाएं
ऐसी सामूहिक नृत्य मुद्राएं
मानो वहां भी कोई उदयशंकर नृत्य सम्राट
नृत्य में उड़ते हुए ऊपर
जैसे समागम में समाधिस्थ
आकाश उनका काम गुंजार में डूबा
कामद कीट उड़ानों में शामिल मैं
जैसे गाता हूं उनके अनुवाद हवाओं में
और पवित्र होता हूं इंद्रधनुष के रंगों में
नहीं जानता कि क्या कुछ उमड़ता है भीतर
सिवाय इसके कि मैं करता हूं साथ-साथ नृत्य
और उनकी तरह ही देखता हूं स्वप्न
उन संततियों का जो जन्म लेंगी अब आने वाले मौसम में
शुरू होंगे नए उत्सव कि बचे हैं वन
बची है प्रकृति की अनुपम रचनाएं कि बचा है जल आसमान की आंखों में
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