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देखते-ही-देखते कोरोना-काल गुज़र गया / सुजीत कुमार 'पप्पू'

देखते-ही-देखते कोरोना-काल गुज़र गया,
तोड़ के हद उम्मीदों को दर-बदर वह कर गया।

सोचते ही रह गए हम दिन-महीने कट गए,
ख़्वाब सारे तोड़ कर वह बेवफ़ा संवर गया।

रोज़-रोज़ नई कहानी रात-दिन बनती गई,
एक चौखट से दूजे तक जब जहाँ वह अड़ गया।

हौसले सब तोड़ के गर्दिश में सबको छोड़ के,
काल-चक्र वह तब हटा जब आरज़ू सब मर गया।

साल आया फिर नया ले ख़्वाब आया फिर नया,
देखिए गुलज़ार गुलशन ख़ुशबुओं से भर गया।