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देखते जाइए बात ही बात में / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
देखते जाइए बात ही बात में
कब,किसे डाल दे वो हवालात में
उसके जलवों के आगे न ठहरा कोई
लुट गये हम भी पहली मुलाक़ात में
हर तरफ़ है कुहासा सा छाया हुआ
जीना दुश्वार है ऐसे हालात में
फ़स्ल क्या होगी जब पत्तियां झर गयीं
ऐसे पत्थर पड़े अबकी बरसात में
भोर होते ही फिर देवता हो गया
जानवर से भी बदतर था जो रात में
मैं दिया हूं , मेरी ज़िंदगी जंग है
आंधियों!बस रहो अपनी औकात में
आओ इक दूसरे से मोहब्बत करें
कुछ भी रक्खा नहीं धर्म में, जात में