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देखते ही देखते पहलू बदल जाती है क्यूँ / कुँवर बेचैन
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देखते ही देखते पहलू बदल जाती है क्यूँ
नींद मेरी आँखों में आते ही जल जाती है क्यूँ।
हाथ में 'शाकुंतलम' है और मन में प्रश्न है
याद की मछली अंगूठी को निगल जाती है क्यूँ।
ऐ मुहब्बत, तू तो मेरे मन में खिलता फूल है
तुझसे भी उम्मीद की तितली फिसल जाती है क्यूँ ।
इक सुहानी शाम मुझको भी मिेले, चाहा अगर
आने से पहले ही फिर वो शाम ढल जाती है क्यूँ ।
ये सुना था मौत पीछा कर रही है हर घड़ी
ज़िन्दगी से मौत फिर आगे निकल जाती है क्यूँ ।
मेरे होठों पर हँसी आते ही गालों पर मेरे
आंसुओं की एक सन्टी सी उछल जाती है क्यूँ।
आंसुओं से जब भी चेहरे को निखारा ऐ 'कुँअर'
ज़िन्दगी चुपके से आकर धूल मल जाती है क्यूँ।