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देखते ही देखते बदलेगा मंज़र देखना / शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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देखते ही देखते बदलेगा मंज़र देखना
दर्द सहते-सहते बन जाऊँगा पत्थर देखना
मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये
इन ही तदबीरों से बदलेगा मुकद्दर देखना
सिर्फ़ चेहरे की कशिश को इश्क़ का मत नाम दे
प्यार क्या शै है कभी दिल में उतरकर देखना
है अजब अंदाज़ उनके देखने का देखिए
देखकर आगे निकलना, फिर पलटकर देखना
देखने में हर्ज तो कुछ भी नहीं ’शाहिद’ मगर
देखते देखे न कोई बस संभल कर देखना