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देखना एक दिन / मदन गोपाल लढ़ा

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देखना एक दिन
रेत हो जाएँगे
तुम्हारे सारे गर्व स्तम्भ
लोहा गल कर
पिघल जाएगा
पत्थर भुरभुरा जाएँगे
छंट जाएगा कोहरा
अंशुमान हो जाएगी धरती।

मुझे निर्धन और निहत्था जानने वाले
नहीं जानते
मेरे पास हैं मुट्ठी भर शब्द
जिनको सान पर चढ़ा रहा हूँ मैं।

सूरज की रोशनी में
मेरी साझेदारी
खारिज करने से पहले
सोचना होगा तुम्हें
पत्थर और शब्द में से
कौन भारी रहेगा।