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देखना हाथ से पल निकल जाएँगे / विनोद तिवारी

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देखना हाथ से पल निकल जाएँगे
रोशनी को अँधेरे निगल जाएँगे


मीठे रिश्तों में कड़ुवाहटें घुल गईं
आज हैं दोस्त जो कल बदल जाएँगे

दाढ़ में लग गया आदमी का लहू
भेड़िए गाँव में फिर से कल जाएँगे

मंत्र नफ़रत के हैं द्वेष की आहूति
यूँ हवन मत करो हाथ जल जाएँगे

ताप संताप
 बढ़ता गया गर यूँ ही
मोम के जिस्म सारे पिघल जाएँगे