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देखने में रास्ता छूट गए हैं सब नज़ारे / जया झा
Kavita Kosh से
देखने में रास्ता छूट गए हैं सब नज़ारे,
मिल गई मंज़िल मग़र कब मिलेंगे अब नज़ारे।
नहीं थी देनी फुर्सत गर देख पाने की हमें,
रास्तों के बगल मे क्यों दिए थे रब नज़ारे?
पहुँच कर भी मंज़िल पर हारे हुए से हम रहे,
पीछे खड़ा-खड़ा ही पर देख रहा है जग नज़ारे।
मंज़िल यों बेज़ार है कि ख़याल ये भी आता है
सच है मंज़िल या कहो फिर सच कहीं थे बस नज़ारे।