भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखा, पास पहुँचकर देखा / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखा,
पास पहुँचकर देखा
‘हेमहार’ तरु अमलतास को।

मुझको आए याद ‘निराला’!

काव्य-कृती को
मैंने झुककर
नमन किया,
फिर से उनके साथ जिया।

पत्र-पुष्प के
उनके अक्षर
गीत सुने,
गुन-कौरव के
गुरुतर अर्थ गुने।

अतिशय हर्ष-हिलोर हुआ,
भास्वर भाव-
विभोर हुआ!

रचनाकाल: २३-०३-१९९१