भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखा करूँ तुहारी लीला / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग शिवरंजना-ताल कहरवा)
देखा करूँ तुहारी लीला, गाया करूँ तुहारा नाम।
सुना करूँ नित मुरलीकी धुन, वचन तुहारे परम ललाम॥
नेत्र-मधुप नित करें तुहारे वदन-कमल-मधु-रसका पान।
पूर्ण समर्पित हो जायें इन्द्रिय-तन, मन-मति, जीवन-प्रान॥