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देखा जाए तो भला चाहती है / राजीव भरोल 'राज़'

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देखा जाए तो भला चाहती है
मेरी बीमारी दवा चाहती है

खुद से बेज़ार हुआ चाहती है
तीरगी एक दिया चाहती है

कितनी आसाँ है हयात उनके लिए
जिन चरागों को हवा चाहती है

डांटती है भी, तो अच्छे के लिए
माँ है, वो थोड़ी बुरा चाहती है

फिर से बहनों के पुराने कपड़े
बच्ची सामान नया चाहती है

आँधियों में भी जो रौशन हैं चराग
इसलिए हैं, कि हवा चाहती है

इश्क़ बुनियादी ज़रुरत है मियां
इक तवायफ़ भी वफ़ा चाहती है