भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखा तो था यूं ही / साहिर लुधियानवी
Kavita Kosh से
देखा तो था यूं ही किसी ग़फ़लत–शिआर<ref>लापरवाही जिसका स्वभाव हो</ref> ने
दीवाना कर दिया दिले–बेइख़्तियार ने
ऐ आर्ज़ू के धुंधले ख्वाबों! जवाब दो
फिर किसकी याद आई थी मुझको पुकारने?
तुमको ख़बर नहीं मगर इक सादालौह<ref>सरल स्वभाव</ref> को
बर्बाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने
मैं और तुमसे तर्के-मोहब्बत की<ref>प्रणय-त्याग की</ref> आरज़ू
दीवाना कर दिया है ग़मे-रोज़गार<ref>सांसारिक दुखों ने</ref> ने
अब ऐ दिले-तबाह! तिरा क्या ख्याल है
हम तो चले थे काकुले-गेती<ref>संसार के केश</ref> सँवारने
शब्दार्थ
<references/>