भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखा नहीं देखे हुए मंज़र के सिवा कुछ / निश्तर ख़ानक़ाही
Kavita Kosh से
देखा नहीं देखे हुए मंज़र के सिवा कुछ
हासिल न हुआ सैरे-मुकर्रर* के सिवा कुछ
किस हाल में उस शोख़ से वाबस्ता हुआ दिल
सौगात में देने को नहीं सर के सिवा कुछ
क्यों गर्द-सी उड़ती है ये हर लम्हा रगों में
क्या जिस्म के अंदर नहीं सरसर* के सिवा कुछ
फूलों से बदन डूबते देखे गए हर बार
इस बहर* में तैरा नहीं पत्थर के सिवा कुछ
करते भी तलब क्या कि यहाँ दस्ते अता* में
देने को न था जिन्से-मयस्सर* के सिवा कुछ
1. सैरे-मुकर्रर*--एक ही स्थान पर दुबारा
2. उपहार-जमी हुई ठंढ
3. सरसर-आँधी
4. बहर-सागर
5. दस्ते अता-दया का हाथ
6. जिन्से-मयस्सर-पहले से प्राप्त वस्तु