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देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना क़रीब से / साहिर लुधियानवी
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देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना क़रीब से ।
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से ।।
कहने को दिल की बात जिन्हें ढूंढ़ते थे हम,
महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से ।
नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीं का प्यार,
क़ीमत नहीं चुकाई गई एक ग़रीब से ।
तेरी वफ़ा की लाश पर ला मैं ही डाल दूँ,
रेशम का यह कफ़न जो मिला है रक़ीब से ।