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देखा है जिस ने यार के रूख़्सार की तरफ / 'सिराज' औरंगाबादी
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देखा है जिस ने यार के रूख़्सार की तरफ
हरगिज़ न जावे सैर कूँ गुलज़ार की तरफ
आईना-दिल की चष्म में नूर-ए-जमाल-ए-दोस्त
रौशन हुआ है हर दर हो दीवार की तरफ
मंज़ूर है सलामती-ए-ख़ूँ अगर तूझे
मत देख उस की नर्गिस-ए-बीमार की तरफ
वहाँ नहीं बग़ैर जौहर-ए-शमशीर ख़ूँ-बहा
ज़ाहिद न जा तू ज़ालिम-ए-ख़ूँ-ख़्वार की तरफ
है दिल कूँ अज़्म-ए-चौक उम्मीद-ए-विसाल पर
दीवाने का ख़्याल है बाज़ार की तरफ़
क्या पूछते हो तुम कि तिरा दिल किधर गया
दिल का मकाँ कहाँ यही दिलदार की तरफ़
परवाना कूँ नहीं है मगर ख़ौफ़-ए-जाँ-‘सिराज’
ना-हक़ चला है शोला-ए-दीदार की तरफ़