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देखिए अब और क्या-क्या खेल दिखलाता है वो / कांतिमोहन 'सोज़'
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देखिए, अब और क्या-क्या खेल दिखलाता है वो ।
वक़्त के हाथों में हूँ और भीचता जाता है वो ।।
चाँद हो जाता है अक्सर साँवला उसके बग़ैर
जाते-जाते कुछ अजब जादू-सा कर जाता है वो ।
क्या समझता है मुझे कुछ तो समझता है मुझे
मुझपे आख़िर क्यूँ सितम ढाए चला जाता है वो ।
मेरे दिल से क्या अदावत है उसीसे पूछना
चीख़ता रहता है ये हँसकर गुज़र जाता है वो ।
और जो दोनों ही रहे नाकाम तो समझे ख़ुदा
उसको समझाता हूँ मैं और मुझको समझाता है वो ।
मेरे मरते ही वो जी उठता है मेरी ख़ाक से
पर में जीने पर उतर आऊँ तो मर जाता है वो ।
सोज़ ये मंज़र भी सबको रास आने से रहा
मैं जफ़ा सहता हूँ हँसकर और घबराता है वो ।।
2016 में मुकम्मल हुई