भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखिए बाज़ार में हर चीज़ के पैसे चढ़े हैं / अश्वघोष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखिए बाज़ार में हर चीज़ के पैसे चढ़े हैं,
क़ीमतें आकाश में हैं, हम ज़मीं पे ही खड़े हैं ।

आप कैसे पढ़ सकेंगे उनके चेहरे की जबीं,
उस जमी पर पोस्टर ही पोस्टर चिपके पड़े हैं ।

एक ही शहतीर पर बीमार मंज़िल है खड़ी,
और खम्बे तो महज तीमारदारी में खड़े हैं ।

पेट हो या पीठ हो, कुछ भी दिखाना व्यर्थ है,
हर बसर ये जानता है, वे बहुत चिकने घड़े हैं ।

इस कदर पाबंदियों में मत अकेले जाइए,
जान जोखों में उधर कानून के पहरे कड़े हैं ।