मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
देखिते भोला के सुरतिया, सखिया पागल भेलै ना
अंग विभूति गले सर्पमाला, पहिरन हिनकर बाघक छाला
बसहा के कएल पलकिया,
से सखिया पागल भेलै ना
हाथ त्रिशूल डामरु बजाबे, जटामे गंगा विराजे
रूद्रमाल हृदय बिच लटके, भूत-पिशाच बरिअतिया
से सखिया पागल भेलै ना
हाला-डालामे भांग-धथूरा, रहनि ने एको मिठाइ
पौती-पिटारी नाग भरल अछि, मारे ढोंढ़ फुंफकारी
से सखिया पागल भेलइ ना